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रांकावत समाज में कुलदेवी या देवताओं के स्थान इष्टदेवता की पूजा की जाती है क्योकि समाज में कई परिवार हैं जिनको कुलदेवी की जानकारी नहीं है। किसी कारणवश अपना मूल स्थान छोड़ दिया और परिवर्तनशील समय के अनुसार पूर्वजों द्वारा स्थापित कुलदेवी मंदिर भी नहीं जा पाए। आगे की पीढ़ियां अपनी कुलदेवी या देवता के बारे में नहीं जानते हैं। वर्तमान समय में रांकावत समाज में इष्टदेव हनुमान जी को मानते हैं। समाज के अधिकांश लोग सालासर धाम की यात्रा करते हैं, जो सुजानगढ़ चूरू में स्थित है, और वहां पर जात - झाडुला भी लगाते है।
गोत्र समकालीन वंश खंड एक संयुक्त परिवार के रूप में कार्य करता है। गोत्र मूल रूप से भारतीय वंश के सात वंश खंडों मूल रूप से उन सात वंशों से संबंधित होता है, जो अपनी उत्पत्ति सात ऋषियों से मानते हैं। ये सात ऋषि - अत्रि, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र। वैदिक हिंदू धर्म के प्रसार के साथ आठवें गोत्र को शुरू में अगस्त्य के नाम से जोड़ा गया और गोत्रों की संख्या बढ़ती चली गई। छोटे स्तर पर साधुओं से जोड़कर हमारे देश में कुल 115 गोत्र पाए जाते हैं। रांकावत समाज में ही नहीं सभी भारतीय समाज में स्थान के नाम पर, पूर्वजों के नाम पर, मंदिर के नाम पर भी गोत्र बन गए है। कुछ गोत्र उच्चारण में भिन्नता होने के कारण और अपभ्रंश के कारण भी बन गए। लेकिन शास्त्रों में इनका उल्लेख नहीं मिलता है। ऋषियों की संतान को गोत्र घोषित किया गया है। बाद के समय में जब वैदिक द्रष्टा के लिए एक रेखा का दावा किया गया तो गोत्र की संख्या में वृद्धि हुई। एक ही गोत्र के सदस्यों के बीच विवाह की मनाही का उद्देश्य गोत्र को विरासत में मिले दोषों से मुक्त रखना था और अन्य शक्तिशाली वंशावली के साथ व्यापक गठबंधनों द्वारा एक विशेष गोत्र के प्रभाव को व्यापक बनाना था।
रांकावत समाज में ज्ञात गोत्र की संख्या लगभग 225 है।