कुलदेवी / लोकदेवी तथा अन्य शक्ति - देवी धाम व स्थान
रांकावत समाज बंधुओं की जानकारी के लिए कुलदेवी का स्थान, धाम, शक्ति पीठ स्थल आदि स्थानों का विवरण जो ऑनलाइन उपलब्ध है, आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है। कुलदेवी धाम को समय-समय पर अपडेट किया जाता है। यहां अधिकतर कुलदेवी का मंदिर, परिचय, धाम आदि की जानकारी आपको मिलेगी। यहां पर रांकावत समाज के आलावा भी सभी देवीयों-कुलदेवीयों का वर्णन विवरण दिया जा रहा है। जिससे कुलदेवी के बारे में पूर्ण जानकारी मिले व कोई भ्रम की स्तिथि ना रहे।
कुलदेवी और लोकदेवी के मंदिरों में कई भक्त नियमित रूप से पूजा, आराधना और आरती में शामिल होते हैं। नवरात्रि के दौरान यहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले को देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग यहाँ पहुँचते हैं। देवी के द्वार पर आने वाले श्रद्धालुओं का पूरा विश्वास है कि देवी के दर्शन से सभी संकट दूर होते हैं और देवी की कृपा दृष्टि से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
कुलदेवी का स्थान व धाम
माउंटआबू माता अर्बुदा देवी के नाम पर है। अर्बुदा का अपभ्रंश है आबू जिसके नाम पर माउंटआबू पड़ा। अर्बुद पर्वत पर अर्बुदा देवी का मंदिर है जो देश की 52 शक्तिपीठों में छठा शक्तिपीठ है। अर्बुदा देवी देवी दुर्गा के नौ रूपों में से कात्यायनी का रूप है जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है। जहां भगवान शंकर के तांडव के समय माता पार्वती का अधर यही गिरा था।इसलिए इसे अधर देवी के नाम से भी जाना जाता है।
अम्बिका माता मंदिर जो राजस्थान राज्य के उदयपुर ज़िले से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देवी दुर्गा का एक रूप अम्बिका माता है। मन्दिर का निर्माण लगभग 961 वि सं में हुआ था। माँ दुर्गा की ऊर्जा के एक प्रमुख स्त्रोत शक्ति के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
देवी दुर्गा का एक एक रूप अम्बिका माता की प्रतिमा है। अमरावती के शहर के केन्द्र में गांधी स्क्वायर पर स्थित इस प्राचीन, आध्यात्मिक मंदिर का प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख है और यह माना जाता है कि रुक्मिणी, राजा भीष्मक की बेटी, ने शिशुपाल से अपनी शादी के एक दिन पहले इस मंदिर का दौरा किया। कहा जाता है भगवान कृष्ण ने यहाँ से उनका अपहरण कर लिया था और बाद में उनसे शादी कर ली। अम्बादेवी का मंदिर देवी उदयपुर में है। उदयपुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर गांव जगत में अम्बिका माता का मंदिर है।
राजस्थान के जोधपुर जिले में बिलाड़ा गांव में स्थित श्री आई माता मंदिर आस्था का केंद्र है। जोधपुर से महज 80 किलोमीटर की दूरी पर जयपुर रोड पर स्थित श्री आई माता का मंदिर विश्व विख्यात तीर्थ धाम है। ऐसी मान्यता है कि माता के इस मंदिर में दीपक में से काजल की जगह केसर निकलता है और इस केसर को भक्त अपनी आंखों में लगाते हैं।
पाली से 20 किलोमीटर दूर बाला गांव से 5 किलोमीटर गौरी भाखरी स्थित माता आशापुरा का मंदिर पर श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केन्द्र है।
भारत में माँ शक्ति के ५१ शक्तिपीठों में से एक प्रधान पीठ है। यह आबू रोड से २० किमी दूरी पर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरासुर पर्वत पर स्थित है। अरासुरी अम्बाजी मन्दिर में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है, केवल पवित्र श्रीयंत्र की पूजा मुख्य आराध्य रूप में की जाती है। इस यंत्र को कोई भी सीधे आंखों से देख नहीं सकता एवं इसकी फ़ोटोग्राफ़ी का भी निषेध है। मां अम्बाजी की मूल पीठस्थल कस्बे में गब्बर पर्वत के शिखर पर है।
एकवीरा देवी का अति प्राचीन मंदिर धुलिया में है। कहते हैं कि देवी अहिल्याबाई होलकर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इस परिसर में प्राचीन शमी का वृक्ष है जहाँ वृक्ष के नीचे शमी देव का भारत में स्थित एकमात्र मंदिर है। यहीं पर महालक्ष्मी, विट्ठल-रुक्मिणी, शीतला माता, हनुमान और काल भैरव सहित परशुराम का भी मंदिर है।
आंजन करीब गुमला से 18 किलोमीटर दूर है। गांव का नाम मां देवी अंजनी के नाम पर है। एक पहाड़ी पर गुफा में मां अंजानी रहती थी। इस जगह से प्राप्त पुरातात्विक महत्व के कई वस्तुए हैं जो पटना म्यूजियम में रखा गया था। अंजनी गुफा के नजदीक उसकी गोद में हनुमान के साथ मां अंजनी की एक मूर्ति है। इसे महावीर हनुमन का जन्म स्थान कहा जाता हैअंजनी माता मंदिर (करौली, राजस्थान)
करणी माता का मन्दिर विश्व प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दूर में देशनोक में स्थित है। यह मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाया जाता है। मन्दिर मुख्यतः सफेद चूहों (काबा) के लिए प्रसिद्ध है। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।
कालिका माता मन्दिर एक ८वीं सदी के भारत के राजस्थान राज्य के चित्तौड़गढ़ नगर पालिका में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के भीतर स्थित एक हिंदू मन्दिर है। मन्दिर के अधिकतर हिस्से हाल ही के हैं। यह महाराणा प्रताप से पहले का है। इस मंदिर में पूजा देवी भद्रकाली की होती है।
पहले इस स्थान पर चौहान वंश के शासकों ने यहां केलपूज्य माता /कैवाय माता की प्रतिमा स्थापित की। बाद में दहिया वंश के राणा चच्चदेव दहिया ने विक्रम संवत 999 में यहां मंदिर बनाया था।
नागौर जिले में बड़ी गावँ में केसरी माता का मंदिर है जिसे लोग भीरदा / बिरदा माता के नाम से पूजते है। यह मंदिर गावं के किले में स्थित है। यह कालिका माता का स्वरूप है। माता की चार भुजाओं में शास्त्र है तथा माता की सवारी सिंह पर है।
चैत्रामास में शक्तिपूजा का विशेष महत्व रहा है। राजस्थान के करौली जिला से 24 किमी की दूरी पर त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला मैया का दरबार चैत्रामास में लघुकुम्भ नजर आता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है। मंदिर में कैला (दुर्गा देवी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है।
कुंजल माता मंदिर को गांव के कुलदेवी मंदिर के नाम से जाना जाता है जिसे देह भी कहा जाता है और इसे पहले चंपावत के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है कि देवी माता के अस्तित्व वर्ष 1098 ईस्वी में सामने आये थे। इस मंदिर के बारे में कई कहानियाँ है | स्थानीय लोगों के अनुसार यह कहा जाता है कि पहले मंदिर पत्थर से बना एक चबूतरा था जिसे बाद में इस इलाके के स्थानीय लोगो द्वारा बनाया गया था।
शाजापुर जिले में लगभग 8 साल पहले हुई एक घटना ने वहां के लोगों को आश्चर्य में डाल दिया। यहां आठ सालों से एक पवित्र जोत प्रज्जवलित हो रही है। मंदिर के पुजारी का दावा है कि इस मंदिर में पानी से दीपक का जलना वाकई एक अद्भुत घटना है। दीया कालीसिंध नदी के पानी से जलाया जाता है।
आसोप, जोधपुर मे कुल देवी श्री गायल माता का मन्दिर है। मन्दिर के गर्भगृह में तीन देवी प्रतिमाएं विराजमान है। दाहिनी ओर की सबसे बड़ी प्रतिमा चामुंडा माता की है। मध्य में गायल माता विराजमान है। सबसे छोटी प्रतिमा छाबला माताजी की है। मन्दिर में गर्भगृह के बाहर स्तंभ पर शिलालेख अंकित है, जिसमें इस मन्दिर के विक्रम संवत 1681में निर्मित होने की जानकारी मिलती है।
जैसलमैर से 120 किलोमीटर दूर और माता तनोट मंदिर से 5 किलोमीटर पहले माता घंटीयाली का दरबार है। माता घंटीयाली और माता तनोट की पूजा बीएसएफ के सिपाही ही कर रहे है। कहते है की इस मंदिर परिसर में वर्ष 1965 भारत पाक युद्ध में पाकिस्तान द्वारा गिराए गए बम फटे ही नहीं। बिना फटे इन बमों को मंदिर परिसर में अब तक सहेज कर रखा गया है।
मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित चामुंडा माता मंदिर में स्थापित चामुंडा माता की मूर्ति जोधपुर के संस्थापक और मेहरानगढ़ दुर्ग के निर्माता राव जोधाजी ने इसकी नींव रखने के साथ ही वर्ष 1459 में मंडोर दुर्ग से लाकर यहां स्थापित की थी।
झाड़ोल-फलासिया मुख्य सड़क किनारे बना हुआ चामुण्डा माता मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना माना जाता है।
चमुंडा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में है। यह पालमपुर से लगभग 10 किमी पश्चिम में बनेर नदी पर है।
उत्तराखंड के रुड़की से 19 किलोमीटर दूर भगवानपुर के चुडिय़ाला गांव में स्थित चूड़ामणि देवी का मंदिर है। ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
देश का सबसे पुराना चौथ माता मंदिर टोंक-सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा नाम के शहर में है। यहाँ का चौथ माता का मंदिर पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। यह मंदिर लगभग 567 साल पुराना है।
चौसठ योगिनी मंदिर ग्वालियर से 40 किमी में मुरैना जिले के मितावली गाँव में है। 1323 ईस्वी पूर्व के एक शिलालेख के अनुसार, मंदिर कच्छप राजा देवपाल द्वारा बनाया गया था। कहा जाता है कि मंदिर सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित में शिक्षा प्रदान करने का स्थान था।
राजवंश और कच्छवाह वंश की कुलदेवी जमवाय माता जयपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर पूर्व में जमवा रामगढ़ की पहाड़ियों की घाटी में विराजमान हैं।
राजस्थान में झुंझुनू जिले के भोड़की गावं से 2 किमी धमाणा जोहड़ के किनारे जमवाय माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। इसमें देवी की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण है। यह मंदिर 800 साल पुराना है। इस मंदिर का 1938 में नव-निर्माण किया गया है।
नागौर जिले की मेड़ता तहसील में स्थित रेण गांव के बाहर तालाब के किनारे जाखण माता (यक्षिणी) का मन्दिर है। माता चतुर्भुजी हैं। माता के दाहिने हाथों में खड्ग एवं मुग्दर है तथा बायें हाथों में ढाल एवं फरसा है। यह मन्दिर काफी पुराना बताया जाता है। मंदिर के बाहर लाखा तालाब है। गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज की कुलदेवी है।
भोपाल के कोलार में स्थित जीजी बाई के मन्दिर में मां दुर्गा की पूजा बेटी की तरह होती है और खास यह है कि यहां पर कपड़ों के साथ माता के नए सैन्डिल भी चढ़ाए जाते हैं।
यह सीकर से २९ किमी पर स्थित है। यहाँ पर श्री जीण माता जी (शक्ति की देवी) का एक प्राचीन मन्दिर स्थित है। जीणमाता का यह पवित्र मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार औरंगजेब भी नहीं तोड़ पाया जीण माता का मंदिर। जोगणिया माता मंदिर (चित्तौड़गढ़, राज.)
ज्वाला जी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी शहर में स्थित है, जो धर्मशाला से लगभग 55 किलोमीटर दूर है। ज्वालाजी ज्वाला देवी और ज्वालामुखी के नाम से भी जानी जाती है। ऐतिहासिक रूप से, ज्वाला जी को समर्पित मंदिर में माँ सती की जीभ गिरी थी | इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका के नाम से जाना।ज्वाला माता मंदिर (जोबनेर, राज.)
राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी में हर्षत / हरसिद्ध माता का मंदिर है।
हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में स्थित है। यह हिन्दू देवी सती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है।
राजस्थान के जालोर जिले में भीनमाल कस्बे के पास क्षेमंकरी पहाड़ी पर क्षेमंकरी माता का मंदिर है। क्षेमंकरी माता दुर्गा माता का ही अवतार है।
आबू के पास बसंतगढ़ एक प्राचीन स्थान है। यहां पहाड़ी पर क्षेमकरी दुर्गामाता के प्राचीन मंदिर है। यह खिमेलमाता के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान में बांसवाड़ा से लगभग 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर ऊंची रौल श्रृखलाओं के नीचे सघन हरियाली की गोद में उमराई के छोटे से ग्राम में माताबाढ़ी में प्रतिष्ठित है मां त्रिपुरा सुंदरी। कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा।
तनोट माँ (आवड़ माता) का मन्दिर जैसलमेर जिले से 130 किमी की दूरी पर स्थित हैं। तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही एक रूप कहा कहा जाता है।
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान जहाँ छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी माँ तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। भारत के प्रमुख इक्यावन शक्तिपीठ में से भी एक मानी जाती है। माँ तुलजा भवानी का मंदिर चित्तौढ़गढ़ में स्थित है। शिव की पत्नी पार्वती (दुर्गा) का एक नाम भवानी है।भव अर्थ शिव है। भव की पत्नी भवानी (पार्वती) है |
देवास टेकरी पर स्थित माँ भवानी का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यहाँ देवी माँ के दो स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं। इन दोनों स्वरूपों को छोटी माँ और बड़ी माँ के नाम से जाना जाता है। बड़ी माँ को तुलजा भवानी और छोटी माँ को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है।
देवहूति - मनु शतरूपा की कन्या और कर्दम ऋषि की पत्नी एवं भगवान कपिल की माता थी। देवहुति माता का मंदिर गुजरात के पालनपुर में है और यहीं पर ही कर्दम ऋषि और देवहूति के घर कपिल भगवान् पुत्र के रूप में आये थे।
पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र व शत्रुजिव्हा है। पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही मां भगवती धूमावती देवी का देश का एक मात्र मन्दिर दतिया मध्य्प्रदेश में स्तिथ है। मां पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। यह पीताम्बरा पीठ दस महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी का मन्दिर है। यह देश के सबसे बड़े शक्तिपीठों में से एक है। 'बगला' शब्द संस्कृत के 'वल्गा' शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है, दुल्हन। देवी मां के अलौकिक सौन्दर्य के कारण उन्हें यह नाम मिला। पीले वस्त्र पहनने के कारण उन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है।
श्री भादरिया राय मन्दिर स्थान जैसलमेर से करीब 80 की. मी. जोधपुर रोड धोलिया ग्राम से 10 की. मी. उतर की तरफ़ हें।
प्रतापगढ़ जिले की छोटी सादड़ी से 3 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन भंवर माता या भ्रमर माता का मंदिर है जहाँ प्रतिवर्ष हरियाली अमावस्या और नवरात्रि में विशाल मेला भरता है।
मां लक्ष्मी का एक प्राचीन मंदिर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है। इसका नाम महालक्ष्मी मंदिर है कोल्हापुरी माता अम्बाबाई माता भी कहते है। ऐसी मान्यता है कि देवी सती के इस स्थान पर नेत्र गिरे थे। यहां भगवती महालक्ष्मी का निवास माना जाता है। वर्ष में एक बार मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं। कहा जाता है कि महालक्ष्मी अपने पति तिरुपति यानी विष्णु जी से रूठकर कोल्हापुर आईं थीं। यही कारण है कि तिरुपति देवस्थान से आया शाल उन्हें दीपावली के दिन पहनाया जाता है।
चामुंडेश्वरी मंदिर कर्नाटक के मैसूर में चामुंडी नामक पहाड़िया पर स्थित धार्मिक स्थान है। वास्तव में मैसूर नाम महिषासुरा से निकला है। यह मंदिर चामुंडेश्वरी देवी को समर्पित है। चामुंडेश्वरी देवी को दुर्गाजी का ही रूप माना जाता है। चांमुंडेश्वरी महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जानी जाती हैं, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। चामुंडी पहाड़ी पर महिषासुर की एक ऊंची मूर्ति है और उसके बाद मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। यह मां के 51 शक्तिपीठों में से एक है, यह 18 वां महाशक्ति पीठ है, मान्यतानुसार, यहां माता के बाल गिरे थे।
माहूर एक पौराणिक तीर्थ स्थल है। जहाँ माँ रेणुका माता का मंदिर है जो भगवान परशुराम की माता है। हर नवरात्रि में यहाँ मेला लगता है और भक्त दूर दूर से यहाँ दर्शन के लिये आते हैं। यहाँ तेलंगाना और महाराष्ट्र से ज्यादा तादाद में लोग आते है। मंदिर परिसर में बहुत हरियाली है और बहुत ही मनमोहक दृश्य है। मंदिर के आगे वाले टीले पर एक पुरातन कालीन किला है। पास ही में देव देवेश्वरी में भगवान दत्तात्रेय का मंदिर भी है। माता रेणुका के मंदिर में उनका चेहरा प्रस्थापित है जो स्वयंभू है। महाराष्ट्र में देवी के साडेतीन शक्तिपीठ हैं,और माहूर उन्ही में से एक है। यहां पर देवदेवेश्वरी नामक महानूभावपंथीय मंदिर है। मां रेणुका जमदग्नि ऋषि की पत्नी थी। माता रेणुका के पांच पुत्र थे जिनके नाम क्रमशः 1- रुमण्वान, 2- सुषेण, 3- वसु, 4- विश्वावसु एवं 5- परशुराम। परशुरामजी तो भगवान विष्णुजी के अवतार माने जाते हैं।